ईरान की मिसाइल बनाने में मदद कर रहा चीन, तेरहान को भेजा 2000 टन सॉडियम पर्क्लोरेट

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

China Iran Nuclear Program: अमेरिका और इजरायल द्वारा ईरान पर हमला करने के बाद अब चीन उसकी मदद के लिए आगे आया है. चीन ने चुपचाप ईरान की बड़ी मदद की है. यूरोपीय खुफिया सूत्रों के मुताबिक, पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद चीन ईरान के मिसाइल कार्यक्रम को फिर से मजबूत करने में मदद कर रहा है.

बता दें कि इजरायल से 12 दिन तक लगातार युद्ध के बाद ईरान ने लंबे समय के सहयोगी चीन और रूस की मदद ली, जिससे पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव को कम किया जा सके, जबकि नए परमाणु समझौतों पर बातचीत विफल रही. इस बीच अब खबर सामने आई है कि चीन ने ईरान को 500 मिसाइल बनाने का रॉ मैटेरियल भेजा है.

चीन कर रहा ईरान की बड़ी मदद

रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर के अंत से ईरान को चीन से 2000 टन सॉडियम पर्क्लोरेट मिला है, जिसका इस्‍तेमान मिसाइल ईंधन बनाने में किया जाता है और यह मात्रा लगभग 500 बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए काफी है. वहीं इससे पहले फरवरी में, चीन ने ईरान को 1,000 टन सॉडियम पर्क्लोरेट भेजा था.

दरअसल, अगस्‍त में सामने आई एक इजरायली मीडिया रिपोर्ट ने ईरान और चीन के बीच सतह से सतह तक मार करने वाली मिसाइलों के प्रोडक्शन में बढ़ते सैन्य सहयोग की चेतावनी दी. इसके साथ ही इसमें यूरोपीय खुफिया एजेंसियों के ट्रैकिंग की भी बात की गई.

अब JCPOA के तहत बंधा नहीं ईरान

जानकारों का मानना है कि इजरायल के साथ जंग समाप्‍त होने के बाद ईरान ने संकेत दिया है कि उसने नई पीढ़ी की मिसाइलें तैयार की हैं, जिसका आगामी किसी भी जंग में प्रयोग किया जा सकता है. ईरान ने ऐलान किया है कि अब वो 2015 के संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) के तहत बंधा नहीं है, जिसने उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित किया था और इसके बदले में प्रतिबंधों में राहत दी गई थी. JCPOA अक्टूबर में समाप्त हो गया.

ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के खिलाफ अमेरिका

दरअसल, ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एस्माइल बाकाई ने सितंबर में कहा था, अमेरिका ईरान की राष्ट्रीय रक्षा क्षमताओं के बारे में निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है. इसी बीच अमेरिकी विदेश सचिव मार्को रुबियो ने भी कहा था कि ईरान का संभावित रूप से परमाणु हथियार और ऐसे मिसाइलों का होना जो उन हथियारों को दूर तक पहुंचा सकती हैं, “अस्वीकार्य जोखिम” है. बता दें कि अमेरिका लगातार ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ खड़ा रहा है. जबकि तेहरान ने अमेरिका के ईरान के मिसाइल कार्यक्रम की आलोचना को खारिज कर दिया था.

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