Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, उत्तानपाद के दो रानियां थीं। सुरुचि राजा की प्रिय रानी थी, जबकि सुनीति उपेक्षिता थी। एक दिन उत्तानपाद सुरुचि के पुत्र उत्तम को गोंद में लेकर बैठे थे। उसी समय सुनीति का पुत्र ध्रुव भी उनकी गोंद में बैठने के लिए आया।
सुरुचि ने उसे दुत्कार दिया तो माँ सुनीति के कहने पर ध्रुव ने वन में जाकर प्रभु को प्राप्त किया। यह उत्तानपाद और कोई नहीं पैर ऊपर और सिर नीचा रखकर मां के गर्भ में सोने वाला प्राणी ही है। सुरुचि का मतलब इन्द्रियों के द्वारा मनमाना भोग भोगना है। सुनीति यानि इच्छा पर काबू रखने की शक्ति।
उत्तम (उद+तम) ईश्वर से वंचित विषयानन्द और ध्रुव अविचल शान्ति प्रदान करने वाला ब्रह्मानन्द। जीव को रुचि प्यारी लगती है और नीति पसन्द नहीं आती, इसलिए इन्द्रिय वृत्ति से प्राप्त विषयानंद में वह रम जाता है और नीतिमय संयमी जीवन द्वारा प्राप्त होने वाले ब्रह्मानन्द की उपेक्षा करता है।
किन्तु इसी से उसके भाग्य में चौरासी का आवागमन चक्र लिखा रहता है।निराधार के बनो सहायक, सदाचार के बनो विधायक। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।