Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्ति- जीवन में यदि भक्ति का विस्तार करना हो तो सभी से प्रेम करो और यदि ज्ञान बढ़ाना हो तो सभी का त्याग करो। सबके साथ प्रेम करके सबमें परमात्मा के दर्शन करने वाले की भक्ति सार्थक होती है।
केले का छिलका बेकार है- ऐसा मानकर उसे फेंक देना ज्ञानमार्ग है और यह छिलका भी उपयोगी है ऐसा समझकर प्रेम भाव से उसे गाय को खिला देना भक्तिमार्ग है। व्यर्थमान कर फेंके गए केले के छिलके पर कभी किसी के फिसल कर गिरने की संभावना बनी रहती है, किन्तु गाय को प्रेमभाव से खिलाया गया छिलका दूध में रूपान्तरित होकर जीवन का फिर से पोषक बनेगा।
इसी तरह ज्ञानमार्ग में कभी-कभी अभिमान के कारण फिसल जाने का डर बना रहता है, जबकि भक्ति मार्ग में तो प्रेम-ही-प्रेम और आनन्द ही आनन्द होता है। एक क्षण के लिए भी परमात्मा से अलग नहीं रहना और हृदय को हमेशा प्रभु-प्रेम में डुबोए रखना ही सच्ची भक्ति है।
दूसरों के सुख में सुखी रहना सीखो। अपने सुख में तो हर कोई सुखी रह लेता है लेकिन दूसरों के सुख में सुखी रहना भक्त के लिए ही सम्भव है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।