Asia Cup Trophy: दुबई में खेले गए एशिया कप के फाइनल मैच में भारतीय टीम ने न सिर्फ पाकिस्तान का हार से सामना करवाया बल्कि उन्हें उनकी औकात भी दिखा दी. इस दौरान भारतीय खिलाड़ी बुमराह ने जहां हारिस रऊफ को उसी के भाषा में जवाब दिया, वहीं मंच पर न जाकर नकवी को भी शर्मशार कर दिया.
बता दें कि भारतीय टीम ने जीत के बाद ट्रॉफी लेने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि उसे एशियाई क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष और पाकिस्तान के गृहमंत्री मोहसिन नकवी के द्वारा दी जानी थी. हालांकि यह बवाल सिर्फ यहीं नहीं रुका बल्कि जब टीम इंडिया ने ट्रॉफी लेने से मना किया तो मोहसिन नकवी उसे अपने साथ लेकर चले गए. ऐसे में सवाल ये है कि यदि कोई विनिंग टीम ट्रॉफी लेने से मना कर देता है तो वह आखिर किसके पास रहती है? और इसका क्या नियम कानून है.
सिर्फ विनर टीम की ही होती है ट्रॉफी
बता दें कि किसी टूर्नामेंट का नतीजा मैच के अंत के साथ ही तय हो जाता है. यानी जिस टीम ने मैच या फाइनल जीता, वही आधिकारिक रूप से विजेता कहलाती है और उसके नाम ट्रॉफी दर्ज होती है. लेकिन यदि कभी कोई टीम किसी कारणवश ट्रॉफी लेने से इनकार भी कर दे, तो भी ट्रॉफी की कानूनी और आधिकारिक मालिक वही टीम रहती है. आयोजक उसे रनर-अप टीम को नहीं सौंप सकते, क्योंकि नियम के मुताबिक उपविजेता केवल रनर-अप का दर्जा ही रखता है, उसका ट्रॉफी पर कोई अधिकार नहीं होता है.
किसके पास सुरक्षित रहती है ट्रॉफी
हालांकि ऐसे मामलों में आयोजकों की जिम्मेदारी होती है कि ट्रॉफी को सुरक्षित अपने पास रख लें, और फिर जब बाद में मामला शांत हो जाए तब उसी टीम को यह ट्रॉफी सौंप दी जाती है जिसने खिताब जीता था. बता दें कि आईसीसी के नियमों में ऐसा कोई सीधा प्रावधान नहीं है कि ट्रॉफी स्वीकार न करने पर कप्तान को दंड दिया जाए. लेकिन यह कदम आईसीसी की आचार संहिता के दायरे में आ सकता है, क्योंकि इसे खेल की भावना के विपरीत समझा जाता है.
कप्तान के खिलाफ हो सकती है ये कार्रवाई
यदि किसी कप्तान ने सार्वजनिक रूप से ट्रॉफी लेने से मना कर दिया, तो उसे लिखित या मौखिक रूप से अपने फैसले का स्पष्टीकरण देना होता है. इसके बाद उस टूर्नामेंट की संचालन संस्था मामले की समीक्षा करती है और उसके आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की संभावना रहती है, जिसमें चेतावनी, जुर्माना या औपचारिक विरोध दर्ज होना शामिल हो सकता है.
क्यों विवादास्पद है ट्रॉफी ठुकराना?
दरअसल, किसी भी टीम द्वारा ट्रॉफी लेने से इनकार किया जाना क्रिकेट की मूल भावना का अनादर माना जाता है. क्योंकि खेल सिर्फ प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि परंपरा और सम्मान का मिश्रण है. ऐसे में किसी भी टीम के खिलाड़ी और कप्तान द्वारा इस तरह का कदम उठाने से उनकी अपनी छवि, टीम की प्रतिष्ठा और यहां तक कि पूरे खेल की साख को नुकसान पहुंच सकता है.
कप्तान को बताना होता है कारण
हालांकि ऐसे स्थिति में सबसे पहले कप्तान या प्रतिनिधि को लिखित या मौखिक रूप से अपने फैसले का स्पष्टीकरण देना होता है. इसके बाद बीसीसीआई या संबंधित बोर्ड इस मुद्दे को आईसीसी के सामने रख सकता है. ऐसे में यदि कोई भारतीय बोर्ड किसी विवादास्पद घटना पर आगामी आईसीसी सम्मेलन में औपचारिक विरोध दर्ज कर सकता है. वहीं, आईसीसी के पास अनुचित आचरण की जांच के लिए एक मजबूत अनुशासनात्मक तंत्र है. आचार संहिता के अंतर्गत यह देखा जाता है कि कप्तान का कदम उल्लंघन की श्रेणी में आता है या नहीं, और यदि आता है तो आगे की कार्रवाई तय की जाती है.
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