Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान के बिरह में पागल बने हुए बृजवासियों को प्रभु ने आश्वासन दिया कि जितना आनन्द संयोग में है उतना ही बल्कि उससे भी ज्यादा आनन्द प्रभु के लिए आंसू बहाने में है।
महारास में भक्ति की ही चर्चा है, मोह की बात नहीं है। उसमें तो जीव और शिव की विशुद्ध भक्ति लीला है। मनसा, वाचा, कर्मणा प्रभु से मिलना ही भक्ति है। भक्ति और मोह – ये दोनों अलग-अलग विषय हैं। शरीर में कोई रोग हो जाय तो मोह जाता रहता है, जबकि भक्ति तो क्षण-क्षण बढ़ती ही जाती है।
मोह में अत्यन्त उतावलापन होता है। भक्ति में अत्यन्त धैर्य होता है। उतावलापन उल्कापात- झंझावात पैदा करता है। धैर्य नवसृजन नवनिर्माण की प्रतिष्ठा करता है। आपके द्वार पर आया हुआ भिखारी भी प्रभु का स्वरूप है। उसे जूठा भोजन नहीं देना चाहिए।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।