Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जीव यदि संन्यास ले और योगमार्ग का अभ्यासी बने तभी उसे भक्ति प्राप्त होती है, इसके बिना नहीं। यही नियम है। परन्तु यदि किसी जीव पर परमात्मा की कृपादृष्टि अवतरित हो तो संन्यास या योग के बिना ही जीवन मुक्ति सम्भव हो सकती है। कृपामार्ग ऐसा दिव्य साधन है।
सभी प्रकार की साधना करते हुए भी जो अहंकार रहित होकर दीनावस्था में प्रभु के चरणों में गिर जाता है, उस पर भगवद् कृपा उतरती है। मन का मैल आंखों के आंसुओं से धुलता है। भगवान के लिए जो रुदन करता है, भगवान उस पर कृपा करते हैं। जिसका हृदय विशाल और नयन स्नेहिल हों उसे ही प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।