Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान शिव भगवती सती के साथ अगस्त ऋषि के आश्रम पर कथा सुनने गये, अगस्त ऋषि ने सम्पूर्ण श्री राम कथा सुनाया और भगवान शंकर ने महर्षि अगस्त को भक्ति का दान किया। भक्ति दो ही दे सकते हैं संत और शिव।यह रामायण में भगवान श्री राम स्वयं कहते हैं। अरण्यकाण्ड श्रीराम गीता में प्रभु कहते हैं कि भक्ति संतों की कृपा से मिलती है-
भगति तात अनुपम सुख मूला। मिलइ जो संत होहिं अनुकूला।।
उत्तरकाण्ड पुरजन उपदेश में भगवान श्रीराम स्वयं कहते हैं कि भक्ति शिव की कृपा से प्राप्त होती है-
औरउ एक गुप्त मत सबहिं कहउँ कर जोरि।
शंकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि।।
बहुत सीधी सी बात है धनवान व्यक्ति धन का दान कर सकता है। जिसके पास जो है उसी का दान कर सकता है। संतों के पास भक्ति-ज्ञान-वैराग्य होता है। जब हम संतों की शरण में जाते हैं तो संत हमें भक्ति ज्ञान वैराग्य प्रदान करते हैं जिससे हमारा कल्याण होता है। शिव भोला भंडारी है उनके भंडार में लोक भी है परलोक भी है।
आपको जो कुछ भी चाहिए शिव के दरबार में सब कुछ मिलता है। भगवान शिव को नित्य एक लोटा जल चढ़ाने से भगवान हमारे जीवन की समस्त समस्याओं का हल कर देते हैं। शिव मंदिर में जाने पर हमें भगवान नंदी का दर्शन और शिव द्वार के पास कच्छप का दर्शन होता है। कछुआ संयम का प्रतीक है, जब उसे चलना होता है तो हाथ पैर बाहर निकालकर चलता है और बाद में हाथ पैर सब भीतर समेट लेता है। नंदी धर्म का प्रतीक है।
धर्म के चार चरण हैं सत्य,तप,दया और दान। नंदी के जो चार चरण है यही धर्म के चार चरण हैं। शिव मंदिर आने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव यही शिक्षा देते हैं कि- आपके जीवन में संयम होना चाहिए और धर्म का पालन होना चाहिए। जिसके जीवन में संयम और धर्म है उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।