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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, आपका मन जहाँ बैठा है, वहीं आप बैठे हो। मन यदि विषयों में मग्न है तो हजार बार स्नान करने के बाद भी आप अपवित्र रहोगे और उस समय तक प्रभु के साथ भक्ति-सम्बन्ध नहीं बाँध सकोगे। मन यदि प्रभु के चरणों में संलग्न होगा तो शरीर की हर स्थिति में आप परम पवित्र ही होगे और आपके साथ बंधे हुए भक्ति सम्बन्ध की पूर्ति के लिए प्रभु सामने दौड़े चले आयेंगे।
मन से संसार विलीन होने पर ही ब्रह्म-सम्बन्ध स्थापित होता है।। ब्रह्म-सम्बन्ध में तन का नहीं अपितु मन का महत्व है।शरीर तो मेद-मज्जा से भरा हुआ है, जिसे प्रभु स्पर्श नहीं करते। श्रीकृष्ण के स्मरण में जब देह का बोध समाप्त होता है और संसार विलीन हो जाता है, तभी मन प्रभु में तन्मय होता है एवं तभी उनसे भक्ति-सम्बन्ध स्थापित होता है। अतः सबसे अधिक महत्व मन की तन्मयता का है। चलो हम सब अपने चित्त को प्रभु चरणों में समर्पित कर दें, ताकि इस समबन्ध को ढूंढते हुए स्वयं परमात्मा दौड़े चले आयेंगे।
बिलासी लोगों से तो भगवान भी दूर भागते हैं। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।