भक्त, भक्ति, भगवन्त और गुरु इन चारों तत्वों की करनी चाहिए उपासना: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्त भक्ति भगवन्त गुरु चतुर नाम वपु एक। तिनके पद वंदन किये नासै विघ्न अनेक।।
श्रीभक्तमाल जी में श्रीनाभागोस्वामीजी कह रहे हैं कि- यह चार तत्व हैं। भक्त, भक्ति, भगवन्त और गुरु। इन चारों तत्वों की उपासना करनी चाहिए। कोई कहता था, एक तत्व है। कोई कहता था, दो तत्व है। कोई कहता था, तीन तत्व है। नाभा गोस्वामी जी कहते हैं चार तत्व है। इन्होंने सबसे अलग बात कही है।
जगद्गुरु श्री आद्यशंकराचार्य भगवान ने कहा एक तत्व है। केवल ईश्वर तत्व को स्वीकार किया। जगद्गुरु श्री मध्वाचार्य भगवान ने कहा दो तत्व है ब्रह्म और जीव। जगद्गुरु श्री रामानन्दाचार्य भगवान, जगतगुरु श्री रामानुजाचार्य भगवान ने कहा- तीन तत्व है। ब्रह्म, जीव और माया।
श्रीनाभागोस्वामीजी ने श्री भक्तमाल में चार तत्व बताया। सबसे अलग बात कही। भक्त, भक्ति, भगवन्त और गुरु ये चार तत्व हैं। अगर कोई साधक कहे कि उपासना तो एक की होनी चाहिए, चार की उपासना में बड़ी कठिनाई है। एक को बता दो। श्रीनाभा गोस्वामी जी कहते हैं ये चारों एक ही है। एक की उपासना करने से चारों की उपासना हो जाती है।
“चतुर नाम” यह चार नाम है ,”वपु एक”। एक की उपासना करने पर शेष तीनों की उपासना हो जाती है।”इनके पद बंदन किये” इनके चरण वंदन करने से “नासहिं विघ्न अनेक” अनेक प्रकार के विघ्न की निवृत्ति हो जाती है।
ये चार तत्व हैं इनका स्वरूप क्या है?
1-भक्त– हरि गुरु दासनि सों सांचो सोई भक्त सही, गही एक टेक फेरि उरते न टरी है। हरि, गुरु, संतों से सच्चा व्यवहार हो और भजन की जो टेक स्वीकार कर ले उसको कभी छोड़े नहीं। एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है कि- व्यवहार में सच्चा और भजन में पक्का ये भक्त का लक्षण है।
2-भक्ति– भक्ति का क्या स्वरूप है और भक्ति का लक्षण क्या है? भक्ति रस रूप कौ स्वरूप यहै छवि सार, चारू हरि नाम लेत असुवन झरी है।। भक्ति का क्या स्वरूप है? भगवान का नाम सुनते ही, भगवत चरित्र सुनते ही, नेत्रों से अश्रुधारा बहने लग जाय, रोम रोम खिल उठे, तो समझ लेना चाहिए भक्ति महारानी हृदय में विराजमान हैं।
3-भगवान- भगवान का क्या लक्षण है? वही भगवन्त संत प्रीति को विचार करे, धरै दूरि इशिताहूं पांडुन सो करी है। भगवान कौन है? जो संतों के, भक्तों के, प्रेम का विचार करके, अपनी ईश्वरता का पूर्ण त्याग करके, भक्तों-संतों से स्नेह करे। कैसे? जैसे भगवान ने पांडवों से किया।
भगवान ब्रह्मा जी से कहते पांडवों के दूत बन जाओ, ब्रह्मा जी अपना सौभाग्य मानते, लेकिन भगवान स्वयं पाण्डवों के शांति दूत बने। भगवान किसी भी देवता से कह देते अर्जुन के सारथी बन जाओ। वह देवता अपना सौभाग्य मानता, लेकिन भगवान स्वयं अर्जुन के सारथी बनें। वही ईश्वर है जो सज्जनों के स्नेह का आदर करे।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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