सत्पुरुषों में जो आसक्ति है, वही है सत्संग: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
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Puskar/Rajasthanपरम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जब द्रवहिं दीनदयाल राघव साधु संगति पाइये। जेहिं दरस परस समागमादिक पाप रासि नसाइए।। ये सत्संग की महिमा है। मानव जीवन के लिए सत्संग सबसे बड़ा  खजाना है। संसार की सारी वस्तु पुरुषार्थ साध्य है, लेकिन सत्संग का योग भगवान ही उपस्थित करते हैं।
संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय।
सुत दारा और लक्ष्मी पापी के भी होय।।
तात मिले पुनि मात मिले सुत भ्रात मिले जुबती सुखदाई, राज मिले गज बाज मिले सुख साज मिले मन वांछित पाई। लोक मिले परलोक मिले विधि लोक मिले वैकुंठहुं जाई, सुंदर और मिले सबहिं पण संत समागम दुर्लभ भाई।।
सत्संग के सामने सारी क्रिया गौड़ है, जप तप आदि से भी चित्त निर्विकार नहीं हो पाता, जबकि सत्संग से चित्त की शुद्ध हो जाती है। सतां संगः सत्संगः सत्पुरुषों का संग सत्संग है। संग का अर्थ होता है आसक्ति। सत्पुरुषों में जो आसक्ति है, वही सत्संग है।
सत्संग शब्द का दूसरा अर्थ है। सत का क्या अर्थ है?सत का अर्थ  परमात्मा है। भगवान का नाम, रूप, गुण, लीला, धाम ऐतत चतुष्टयं नित्यं सच्चिदानंद विग्रहमं।। ये सत है, इसका संग यानि इसमें आसक्ति इसको सत्संग कहते हैं।
सत में स्थिति असत् की निवृत्ति पूर्वक सत में प्रतिष्ठा सत्संग है। सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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