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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णन आता है कि बृजवासी भक्त वस्त्र सन्यासी नहीं, बल्कि श्रीराधा कृष्ण के चरणों में प्रेम होने से उनका सब कुछ छूट गया और उनका हृदय हरिमय बन गया।
वह यदि घर पर काम करते तो भी भगवान श्रीराधाकृष्ण के स्मरण में डूब कर करते, वस्त्र आभूषण धारण करते तो भी प्रभु को प्रसन्न करने के लिए करते, कम से कम संसार के सुखों का को प्राप्त करते, अधिक से अधिक भगवद् भागवत सेवा में जीवन को लगते। ऐसे बृजवासी भक्त भक्ति सन्यासी कहे गये।
बृजवासियों का श्रृंगार संसार के लिए नहीं, अपितु भक्ति की पुष्टि के लिए था।निर्विकार रूप से किया गया श्रृंगार भी प्रभु की भक्ति ही है। बृजवासियों का प्रत्येक व्यवहार भक्तिमय था। भक्ति और व्यवहार को अलग-अलग मत मानो, अन्यथा भक्ति केवल ऊपरी-ऊपरी होगी तथा व्यवहार अशुद्ध रहेगा।
जो मनुष्य हिसाब में घोटाला करता है, उसी को घबराहट होती है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।