प्राचीन काल में शिष्य को निःस्वार्थ भाव से दी जाती थी शिक्षा: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Must Read
Shivam
Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्राचीन काल में तो शिष्य को निःस्वार्थ भाव से ही शिक्षा दी जाती थी। नदी एवं वृक्ष के समान गुरुकुल के आचार्य बिना किसी अपेक्षा के विद्यादान करते थे, साथ ही साथ अन्न के द्वारा छात्रों को पोषण प्रदान करते थे।
ऐसे आदर्श गुरुओं के पास से विद्या प्राप्त करने के बाद घर लौटने वाला शिष्य गुरुदेव का ऋण चुकाने की भावना से ही गुरु-दक्षिणा देता था।इस तरह जब गुरुकुल से विदा लेते समय श्री कृष्ण ने नम्रता-पूर्वक गुरु के सामने  गुरुदक्षिणा प्रदान करने की इच्छा प्रकट की थी, तब गुरु सांदीपन ने निःस्पृह भाव से केवल इतना ही कहा था, मेरी ही तरह आप भी दूसरों को निःस्पृह भाव से विद्या प्रदान करते रहना और विद्या की वंश वृद्धि करते रहना।
जगत में दो वंश चलते हैं- पुत्र परंपरा का बिंदु वंश और शिष्य परंपरा का नादवंश। कुरुक्षेत्र में विषादग्रस्त एवं कर्तव्यच्युत अर्जुन को गीता का उपदेश देकर और स्वयं के महाप्रयाण के समय उद्धव को उत्तम देश प्रदान करके श्री कृष्ण ने गुरुदेव का नादवंश बढ़ाकर सच्ची गुरु दक्षिणा प्रदान की थी। जो दूसरों की  देह-पुष्टि करता है, उस पर परमात्मा की स्नेह वृष्टि होती है। बसना ही पुनर्जन्म का कारण है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।
Latest News

‘लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रही तुलसी’, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की वापसी पर बोलीं Smriti Irani

Smriti Irani: अभिनेत्री और राजनेता स्मृति ईरानी एक बार फिर से टीवी सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी'...

More Articles Like This