Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, महाराज दशरथ भगवान का राज्याभिषेक करना चाहते थे। उन्होंने गुरुदेव वशिष्ठ से कहा- (भये राम सब विधि सब लायक।) मेरी वृद्धावस्था है। मैं राम जी को गादी देना चाहता हूँ। आप अच्छा सा मुहूर्त निकाल दीजिए। गुरु जी ने कहा वही दिन सबसे श्रेष्ठ होगा जब आप राम जी का राज्याभिषेक करेंगे।
हम किसी साधु संत से किसी शुभ कार्य के लिए पूछें कि हम कब करें, तो संत हमेशा ही कहेंगे कि आज ही करो। पूजा-पाठ करना कब से प्रारम्भ करें? आज से प्रारम्भ करो। समाज की सेवा या परोपकार परमार्थ जितने मंगल कार्य हैं उसे आज से ही करना चाहिए। महाराज दशरथ ने गुरु वशिष्ठ से कहा आज तो व्यवस्था नहीं है रामराज्याभिषेक कल करेंगे, परिणाम यह हुआ कि चौदह वर्ष बाद राम राज्याभिषेक हुआ लेकिन तब महाराज दशरथ धराधाम पर नहीं थे।
श्रीरामायणजी की शिक्षा है- कोई शुभ विचार आवे तो कल पर नहीं टालना चाहिए, उसे तत्काल करना चाहिए। क्योंकि शुभ विचार पता नहीं कितनी देर तक रहें, कल तक रहें या न रहें? अथवा जीवन क्षणभंगुर है कल हम स्वयं रहें या न रहें, शुभ कार्य ही जीवन में रह जाएगा। कोई अशुभ विचार आवे तो उसे कल के लिए टालना चाहिए। हो सकता है अशुभ विचार चला जाय और हम अशुभ कार्य अर्थात् पाप से बच जाएँ।
काल करे सो आज कर,आज करे सो अब।
पल में प्रलय होयगी, बहुरि करोगे कब।।
केवट प्रसंग में भगवान नाव वाले केवट की नाव पर बैठकर गंगा पार करते हैं। प्रभु श्री राम लक्ष्मण श्री सीता जी ने बहुत आग्रह किया है लेकिन उसने कुछ नहीं लिया। तब भगवान ने नाव वाले केवट को भक्ति का वरदान दिया। जब हम भक्ति करना प्रारम्भ करते हैं तो अनेक प्रकार का प्रलोभन आता है जो प्रलोभन में फंस जाता है वह भक्ति नहीं प्राप्त कर पता है। भक्ति वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जो किसी प्रलोभन में नहीं फँसता।
बहुत कीन्ह प्रभु लखन सिय नहिं कछु केवट लेई।
विदा कीन्ह करूणायतन भगति विमल वर देई।।
भरत-चरित में प्रभु की प्राप्ति में आने वाले व्यवधान का वर्णन किया गया है।अनेक व्यवधानों के के बाद भी जो निरन्तर भक्ति में लगा रहता है, वही प्रभु की प्राप्ति कर सकता है। जब कोई ईश्वर प्राप्ति का लक्ष्य लेकर निकलता है तो सबसे पहली बाधा आती है, उसका नियम टूट जाता है। चित्रकूट की यात्रा करते समय श्री भरतलाल जी ने नियम लिया था कि हम नंगे पांव पैदल चलकर प्रभु दर्शन करेंगे। लेकिन मां कौशल्या के कहने से श्रृंगवेरपुर तक श्री भरत जी को रथ पर बैठना पड़ा।
भजन साधन करते समय कभी नियम टूट जाए तो भी रुकना नहीं चाहिए।लक्ष्य प्राप्ति के लिए साधना करते रहना चाहिए। प्रभु प्राप्ति के मार्ग में दूसरी बाधा श्रृंगवेरपुर के राजा, भगवान श्री राम के सखा निषादराज द्वारा भरत जी की यात्रा का विरोध करने का निर्णय हुआ। जब निषादराज को पता लगा कि भरत लाल जी प्रभु का दर्शन करने जा रहे हैं, तब निषादराज भरत जी के सहायक बनकर उनके साथ चित्रकूट तक पधारे। कई बार भक्तों के द्वारा ही विरोध किया जाता है लेकिन अगर हमारी साधना सही है तो विरोध करने वाले भी हमारे सहायक हो जाते हैं।
भक्तिमार्ग में तीसरी बाधा – श्रीभरत लाल जी जब प्रयाग की भूमि पर पधारे, तो भारद्वाज ऋषि के द्वारा उनकी सम्पत्ति से कसौटी की गई। भरद्वाज ऋषि ने अपनी तपस्या के बल पर अपार वैभव खड़ा कर दिया। लेकिन भरत जी का मन भगवान को छोड़कर जरा सा भी वैभव में नहीं गया। भक्तिमार्ग में संपत्ति से कसौटी की जाती है। जो सुख सम्पत्ति के आकर्षण में नहीं आता, वही ईश्वर को प्राप्त कर पाता।
भक्ति मार्ग में चौथी बाधा- देवताओं को भय लगा श्रीभरतजी भगवान के परम भक्त हैं।उनकी प्रार्थना से कहीं भगवान राम वापस अयोध्या आ गए, तो हमारा क्या होगा? अभी रावण मरा नहीं, असुरों का संहार हुआ नहीं, धर्म की स्थापना हुई नहीं, हमें अभी और भी रावण के आतंक से दुःखी होना पड़ेगा। कई बार ग्रह गोचर और देवताओं के द्वारा भी बाधा पहुंचाई जाती है, लेकिन अगर हमारा प्रभु में प्रेम है तो हम सफल होते हैं।
भक्तिमार्ग में पांचवी बाधा, श्रीलक्ष्मणजी को ऐसा लगा कि भरत सेना लेकर भगवान राम से युद्ध करने आ रहे हैं। श्रीलक्ष्मणजी स्वयं धनुष बाण लेकर भरत जी से युद्ध करने का निर्णय लेते हैं।भगवान राम ने उन्हें समझाया और आकाशवाणी ने भी कहा कि- भरत युद्ध करने नहीं, भगवान का दर्शन करने आ रहे हैं। भजन साधन करते-करते परिवार के लोग ही विरोध करने लगे तो भी घबराना नहीं चाहिए। समझना चाहिए कि अब मंजिल बहुत समीप है। भजन साधन करने वालों के जीवन में कष्ट नहीं आते ऐसा नहीं है, प्रारब्ध बस कष्ट आते ही हैं। लेकिन साधक का निर्णय होता है। कि हमें अपने साधन कभी छोड़ना नहीं है।
कल की कथा में – नवधाभक्ति, किष्किन्धाकाण्ड एवं सुन्दरकाण्ड की कथा होगी। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।