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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मनुष्य अपने शरीर से उतने पाप नहीं करता है, जितने अपने मन से करता है। तन से किये गये पापों के पकड़े जाने का डर रहता है, अतः मनुष्य उन्हें करने से डरता है, किन्तु मन के पाप तो गुप्त रह सकते हैं, अतः दिन-प्रति-दिन बहुत विकराल बन जाते हैं और दीमक की तरह मनुष्य के जीवनसत्व को समाप्त कर देते हैं।
इसीलिए धर्मशास्त्र मनुष्य को मानसिक पापों के सामने खूब सावधान रहने की सूचना देते हैं। आपको अपने मन के पापों के सामने स्वयं ही सावधान रहना है, क्योंकि आप ही अपने मन के पापों को पहचान सकते हो। इसीलिए जिस तरह आप हमेशा सवेरे उठकर दर्पण में अपना मुख देखे हो, उसी प्रकार रोज सत्संग के शीशे में अपने मन का निरीक्षण करो, तभी आप अपने मन को संभाल सकोगे।
जो मन की रखवाली करना जानता है, वही संत बन सकता है। अतः आज से ही सब सावधान हो जाओ। मन से बिल्कुल पाप न हों, इस ओर पूरा ध्यान रखो। प्रभु जीवन देता है, तभी हम जीवित रहते हैं। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।