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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान श्रीसीतारामजी के चरणों में प्रेम भवरोग की औषधि है सभी निवृत्ति नहीं ले सकते। इसी तरह सभी केवल प्रवृत्ति भी नहीं कर सकते। प्रवृत्ति और निवृत्ति के संयोग से ही जीवन समृद्ध और सार्थक बनता है।
इस प्रवृत्ति और निवृत्ति को जोड़ने वाला रसायन प्रभु-प्रेम है। प्रत्येक कार्य यदि प्रेम से करोगे तो थकोगे नहीं। प्रभु को खुश करने, उनके दर्शन करने और परोपकार करते हुए दूसरों के दुःखों को दूर करने की कोई भी प्रवृत्ति निवृत्ति ही है। कोई भी काम करो, प्रभु को याद करते हुए प्रेम से करोगे तो काम में थकान नहीं लगेगी और मन भी नहीं ऊबेगा।
आपके कामों की लोग कद्र करें – इसलिए नहीं, बल्कि उन पर प्रभु की नजर पड़े – इस भावना से ही कर्म करोगे तो कभी भी निराश होने का मौका नहीं आयेगा। प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा मिला दो, तो आपकी भक्ति बरसात में नदी के समान निरन्तर बढ़ती ही जायेगी। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।