भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा है कि किसी भी लोकतंत्र की नींव न्याय तक सबकी पहुंच पर टिकी होती है, और तकनीक इस दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव ला रही है. यह बात उन्होंने 9 जून 2025 को केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही, जहां वे “न्याय तक पहुंच में तकनीक की भूमिका” विषय पर बोल रहे थे.
मुख्य न्यायाधीश ने बताया, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-कोर्ट्स परियोजना, SUVAS अनुवाद सॉफ्टवेयर और NALSA की डिजिटल पहलों ने आम लोगों को अदालत से जोड़ने में उल्लेखनीय काम किया है. खास तौर पर ग्रामीण इलाकों के लोगों को अब बेहतर कानूनी प्रतिनिधित्व मिल पा रहा है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड जैसे प्लेटफॉर्म ने न्यायिक कार्यवाही को पारदर्शी बनाने और मुकदमों की निगरानी आसान करने में बड़ी भूमिका निभाई है.
न्याय प्रणाली में तकनीक का बढ़ता योगदान
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि डिजिटल युग में जहां एक ओर तकनीक न्याय प्रणाली को सुलभ बना रही है, वहीं दूसरी ओर डिजिटल डिवाइड, डेटा सुरक्षा और एल्गोरिदमिक भेदभाव जैसे खतरे भी गंभीर चिंता का विषय हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि तकनीक का इस्तेमाल न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए होना चाहिए, न कि उसका विकल्प बनने के लिए.
उन्होंने बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू हुई डिजिटल पहलें अब स्थायी रूप ले चुकी हैं. केसों की जानकारी, अगली सुनवाई की तारीख और अदालत के आदेश अब ऑनलाइन उपलब्ध हैं. इससे न्यायिक प्रक्रिया न केवल तेज हुई है बल्कि आम लोगों के लिए अधिक समझने योग्य भी बनी है. मुख्य न्यायाधीश ने ‘LESA’ नामक AI आधारित चैटबॉट का भी जिक्र किया, जो लोगों को तुरंत कानूनी जानकारी प्रदान करता है. साथ ही, e-Sewa Kendras और NALSA जैसी संस्थाएं देश के दूर-दराज़ इलाकों तक मुफ्त कानूनी सहायता पहुंचा रही हैं.
हालांकि, उन्होंने चेताया कि तकनीक को अपनाने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी वर्ग या क्षेत्र पीछे न छूटे. न्याय प्रणाली में तकनीक का स्थान केवल एक सहायक के रूप में होना चाहिए, जिसके साथ नीति निर्माण, विनियमन और मानवीय हस्तक्षेप भी जरूरी है. CJI गवई ने अपने संबोधन के अंत में न्यायिक अधिकारियों, वकीलों और शिक्षाविदों से मिलकर काम करने की अपील की ताकि न्याय व्यवस्था को और अधिक समावेशी, जवाबदेह और तकनीक-सक्षम बनाया जा सके.