Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, पुण्य करते समय अभिमान में चूर रहने वाला गाफिल मनुष्य पाप करते समय बड़ी सावधानी रखता है। उस समय तो अंग-अंग में इस बात की सावधानी घर कर जाती है कि कोई मुझे देख न ले या कोई मुझे पकड़ न ले। इस प्रकार उसके जीवन की सम्पूर्ण एकाग्रता पाप करने में ही संलग्न हो जाती है।
और इसीलिए उसके पापकर्म अत्यन्त बलवान होते हैं और इसीलिए उसके पाप कर्म गम्भीर फल देने वाले बनते हैं और इसीलिए उसके पाप समस्त जीवन को जलाने वाले बन जाते हैं। ऐसे पाप से बचते रहो। मन की जागृत अवस्था में तो ऐसे पाप हो ही न पायें, इस बात का ध्यान रखो। कभी अनजान में भी पाप हो गये हों तो प्रभु के समक्ष मुक्त मन से क्षमा मांगो और सभी पाप प्रभु के चरणों में समर्पित कर दो।
प्रभु उदार हैं तुम्हें पाप से मुक्त करेंगे।किन्तु शर्त केवल इतनी है कि अब भविष्य में तुम्हारे हाथ, आंख या जीभ से नये पाप न हों- इसका संकल्प करना चाहिए। पुत्र का विवाह होने पर बहू घर में आये, तब वानप्रस्थी बनो। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।