Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कई वैष्णव अपने व्यापार – धंधे के स्थानों पर द्वारिकानाथ का चित्र लगाते हैं, किन्तु द्वारिकानाथ हमेशा उपस्थित हैं – ऐसा समझकर व्यवहार नहीं करते।ग्राहक के साथ छल करते समय वे यह मानते हैं कि भगवान तो बहरे हैं और फिर अपना धंधा करते रहते हैं।
किन्तु यह बात एकदम गलत है। भगवान की आंखों के सामने ही भगवान के दूसरे बालक को धोखा देना अच्छा नहीं है। व्यापार करते समय यदि अपने ग्राहक में परमात्मा के दर्शन करोगे तो आपका धन्धा ही परमात्मा की प्राप्ति का साधन बन जाएगा।
व्यवहार अत्यन्त शुद्ध होगा तभी भक्ति सम्भव हो सकेगी। जिसका व्यवहार अशुद्ध है, उससे भक्ति शक्य नहीं है।तुलाधार वैश्य धन्धे को ही अपना गुरु मानता था और व्यापार में ईमानदारी का व्यवहार करता था, इसीलिए परमात्मा ने उसे भक्त के रूप में स्वीकार किया।
सत्य का त्याग करने वाले को शान्ति कहां से प्राप्त होगी। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।