गृहस्थ जीवन में मोह नहीं छोड़ता पीछा: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री शुकदेव भगवान विगलित अण्डे के रूप में थे जैसे ही भागवत कथा रूपी अमृत का छींटा पड़ा उनके अन्दर प्राणों का संचार हुआ और वो पार्वती अम्बा के साथ भागवत सुनाने लगे। दसवां स्कन्ध पूर्ण होते पार्वती अम्बा को तो नींद आ गई, लेकिन तोते के रूप में शुकदेव जी हूँ—हूँ ‘ करते रहे।
भगवान् भूत भावन विश्वनाथ नेत्र बंद कर कथा सुना रहे थे। उन्होंने सोचा पार्वती जी हूं हूँ कर रही हैं। आँख खोली तो देखा कि पार्वती सोई हुई है। देवी तुम सो गई हो? हां भगवन ग्यारहवें स्कन्ध में नींद आ गई थी। तो “हूं  हूँ” कौन कर रहा था? यहां तो बर्फ ही बर्फ है। इंसान नहीं, पशु-पक्षी नहीं। जब दृष्टिपात किया तो तोते के रूप में शुकदेव जी बैठे हुए थे।
इसको मार दो ताकि ये कथा बाहर न जाने पाये। अम्बाजी ने कहा भोलेनाथ- आपने जिसको अमर कथा सुना दी वो मारेगा कैसे? वो तो अमर हो गये हैं। वही आकर वेदव्यास की पत्नी पिंगला के उदरस्थ हुए और बारह वर्षों तक गर्भ में रहकर तप किया। जन्म लेने के कुछ समय बाद बड़े होने पर पिताजी यज्ञोपवीत संस्कार कराकर गृहोचित कर्मों में लगाना चाहते थे, लेकिन श्री शुकदेव भगवान बिना वस्त्र गृह त्याग कर चल पड़े।
गृहस्थ जीवन में मोह पीछा नहीं छोड़ता। भजन बहुत करते हैं परन्तु मै और मेरापन नहीं छूटता। जिसके जीवन से मैं और मेरापन निकल जाये उसके जीवन में दुःख कभी प्रवेश नहीं कर सकता। माया आंखों से नहीं दिखती, मैं और मेरा ही माया का स्वरूप है। अहमता और ममता यही दुःखों का मूल है। यदि भागवत के सही भावों को सुनना है तो एक सप्ताह का समय निकालकर बैठो, आपका नुकसान नहीं होगा।
शुकदेव भगवान दिगम्बर हो जा रहे हैं। पीछे से व्यास जी दौड़े बेटा!बेटा! थोड़े दिन और रुक जाओ तुम मेरे बड़े प्यारे पुत्र हो। कुछ दिन यही रह जाओ, विवाह कर दूं, पुत्र हो जाये, उसके बाद सन्यास ले लेना। शुकदेव जी ने कहा व्यास जी न मैं आपका पुत्र हूं, न आप मेरे पिता हैं। यह पिता और पुत्र का नाता मिथ्या है। इसके मूल में केवल मोह ही कारण है और मोह की उत्पत्ति अज्ञान से होती है! अज्ञान की निवृत्ति ज्ञान से होती है और ज्ञान की प्राप्ति सत्संग से होती है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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