गीता सारे महाभारत ग्रंथ का है हृदय: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कथा सत्संग में चरित्र निर्माण होता है। यहां खेती है विचारों की, इसलिए इसे ज्ञानयज्ञ कहते हैं। नया जीवन देती है यह श्रीरामकथा। सत्य और पुण्यकर्म का फल तो हम चाहते हैं लेकिन पुण्य कर्म नहीं करना चाहते। गीता सारे महाभारत ग्रंथ का हृदय है। श्रीकृष्ण की धर्मनीति, राजनीति और कर्म का ज्ञान आपको इसी ग्रंथ में पर्याप्त रूप से मिल सकेगा।
18 अध्याय की एक छोटी पुस्तक में श्रीकृष्ण ने सारे संसार को तत्वज्ञान समझा दिया, यह विश्व की किसी भी भाषा के धर्म ग्रंथो में ढूंढने पर नहीं मिलता। ईश्वर कौन है? वह क्या चाहता है? यह इसी पुस्तक के अध्ययन से जाना जा सकता है। श्रीराम ने यही किया, असमर्थ के साथ करुणा, लेकिन समर्थ के साथ न्याय। आसुरी वृत्ति के व्यक्तियों के हाथ में धर्म न जाये। ऐसे लोगों का उद्धार कर, धर्म को स्थापित करना अवतार कार्य है। समाज के लोग जागें।
जागृति आये, विचारवंत हों। दुनियां को जितना परेशान बुद्धिमानों ने किया है, उतना पागलों ने नहीं किया। पागल जितना उपद्रव नहीं करते, उतना तथाकथित बुद्धिमान उपद्रव करते हैं।सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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