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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, व्यर्थ भटकन- आनन्द प्राप्त करने के लिए बाहर के साधनों में भटकने वाला आनन्द के बदले दुःख ही प्राप्त करता है। निर्मल आनन्द प्राप्त करने के लिए तो अन्दर झांकना आवश्यक है। इन्द्रियां अन्तर्मुखी हों तो आनन्द प्राप्त होगा। यदि वे बहर्मुखी होंगी तो सुख दुःख में पड़ेंगे।
अर्थात बाहर के साधनों में तो आनन्द है ही नहीं, इतना निश्चित है। बाहर के साधनों में यदि आनन्द होता तो अजीर्ण के रोगी को स्वादिष्ट भोजन में अरुचि क्यों होती है? अतः मन अन्तर्मुखी होता है, तभी चैतन्य परमात्मा का स्पर्श कर सकता है। और जब चेतन प्रभु का स्पर्श होता है तो अनिर्वचनीय आनन्द प्राप्त होता है। आत्मा के स्वरूप में स्थिर रहने वाले को ही शाश्वत शांति और आनन्द का अनुभव होता है।
आनन्द आत्मा का सहज धर्म है, जबकि सुख-दुःख मन के स्वाभाविक धर्म हैं। इसीलिए आनन्द प्राप्त करने के लिए आज से ही बाहर के साधनों के पीछे भटकना छोड़ दो। प्रेम उन्नत करता है, काम अधोगति में ले जाता है। प्रेमपूर्ण प्रभु-स्मरण मानव को परमात्मा के निकट पहुंचता हैं। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।