जीवन की शांति के लिए जरूरी है आत्मदर्शन: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जिसे स्वयं की प्रशंसा अच्छी लगती है, उसके हृदय में अभिमान पैदा हो जाता है। उसकी आँखें बन्द हो जाती हैं, अतः वह स्वयं अपने दोष नहीं देख सकने के कारण गाफिल रहता है। उसकी जीवन-गाड़ी किसी भी स्थान पर उलट सकती है। जिसमें दूसरों के दोष देखने की आदत होती है, उसका मन दुष्प्रवृत्ति में डूबा रहता है। इससे उसके जीवन की शान्ति नष्ट हो जाती है।
अतः दूसरों के दोष देखने की आदत बहुत खतरनाक है। दोष देखना हो तो स्वयं के देखो। यदि यह आदत बढ़ती जायेगी तो आप सावधान और निष्पाप बनते जाओगे। यदि हृदय में सतत दैन्य और सद्भाव का अमृत संचित होता रहेगा तो आप सदा-सर्वदा के लिए प्रभु के कृपा पात्र बने रहोगे। 
इस प्रकार यदि अपने दोष देखने की आदत और कुशलता को प्राप्त करना हो तो सतत सत्संग का सेवन करो। जो प्रभु एवं परोपकार के लिए पीड़ा सकता है, उसे रोना नहीं पड़ता। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।
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