Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, संतान हीनता के दुःख से दुःखी होकर आत्महत्या करने के लिए गये हुये आत्मदेव को प्रभु-प्रदत्त परिस्थिति में संतोष मानने का उपदेश देने पर जब कोई फल न निकला, तब नारद जी ने उसकी पत्नी के लिए एक फल दिया. आलसी धुंधली ने उस फल को स्वयं न खाकर गाय को खिला दिया और छोटी बहन के बच्चे को स्वयं ने जन्म दिया है – ऐसा कहकर आत्मदेव को धोखे में रखा.
यह पुत्र धुंधकारी दुराचारी निकला, जिसके फलस्वरुप पिता की अकाल मृत्यु हुई और मां को आत्महत्या करनी पड़ी. आत्मदेव तुंगभद्र नदी के किनारे रहता था. तुंगभद्रा का अर्थ है- खूब कल्याण करने की संभावना से युक्त मानव काया. दुर्लभ मानव काया के किनारे आत्मदेव आया तो था सद्गति प्राप्त करने के लिए, किन्तु उसने धुन्धुली- धूं धूं करने वाली चंचल बुद्धि के साथ विवाह किया।फलस्वरूप विवेक रूपी पुत्र तो नहीं हुआ, बल्कि और दुःख बढ़ गया.
सतत सत्संग करने वाले को ही विवेक रूपी पुत्र की प्राप्ति होती है. बुद्धि के वशीभूत रहने वाले तथा विषय संग में रचे-पचे मनुष्यों को तो अन्त में रोना ही पड़ता है. वक्ता या श्रोता की तन्मयता में जो विक्षेप डालते हैं, उन्हें भयंकर पाप लगता है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना.