Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भागवत की कथा केवल सुन लेने की चीज नहीं है। वह तो श्रवण के बाद सतत मनन द्वारा हृदय में सुरक्षित रखने एवं आचरण की चीज है। भागवत की कथा केवल मृत्यु के बाद मुक्ति प्रदान करने वाली नहीं, बल्कि मृत्यु से पूर्व चलने वाले जीवन में ही मुक्ति का आनन्द अनुभव कराने के लिए है।
कथा की विश्रान्ति का समय भी खूब खाकर आराम करने का नहीं, बल्कि सात्विक जीवन जीकर श्रवण के पश्चात मनन करने के लिए है। कथा सुनने के बाद श्रवण किए गए सिद्धान्तों को सतत मनन करें जीवन में पचाएं तो ही श्रवण सार्थक होगा। कथा का एक-एक सिद्धान्त मनन द्वारा हृदय में स्थिर हो और कथा में सुना हुआ ज्ञान क्रियात्मक बन जाय, तभी उसकी सार्थकता है।
उत्सव प्रसाद में तन्मय होने के लिए नहीं, प्रभु में तन्मय होने के लिए है।सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।