Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, अस्ति और प्राप्ति के पिता जरासंध का नाश काल ने किया, जबकि कृष्ण को वह जरा भी आँच नहीं पहुँचा सका। संग्रह और परिग्रह की प्रवृत्ति में रचे-पचे रहकर हमेशा पाप कर्म करने वाले मनुष्य जब तक जीवन का लक्ष्य स्थिर करते हैं, तब तक तो वृद्धावस्था आ पहुँचती है और काल का क्रूर पंजा उसको दबोच लेता है।
किन्तु सब इन्द्रियों से भक्ति करके अपनी देह को द्वारिका जैसा बना लेने वाले कृष्ण जैसे महान के पास जरासन्ध का – वृद्धावस्था का जोर चल नहीं सकता। उनकी बुद्धि में ब्रह्मविद्या स्थिर होती है तथा यौवन रूपी काल उनका भक्षण नहीं कर सकता।
अतः प्रत्येक इन्द्रिय को पाप से खींचकर प्रभु भक्ति में लगा दो। धन की अपेक्षा धर्म श्रेष्ठ है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।