Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मनुष्य शरीर की विशेषता सिर्फ इतनी ही है कि मनुष्य शरीर से परमात्मा का चिंतन हो सकता है। भगवान श्रीराधाकृष्ण, भगवान श्रीसीतारामजी का चिंतन हो सकता है। अगर हम सब चाहें तो भगवान का भजन कर सकते हैं। वह अन्य जीवों के शरीर से नहीं हो सकेगा। यदि मानव होकर भी आपने परमात्मा का चिन्तन नहीं किया तो गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज कहते हैं कि – वे इंसान दूसरे जीवों से बहुत नीचे हो गये।
तेहिं ते खर सूकर श्वान भले, जड़ता बस ते न कहे कछु वे।
तुलसी जेहिं राम स्नेह नहीं, सो सही पशु पूँछ विषान न छ्वै।।
जननी कत भीर मुई दस मास, भई किन बांझ गई किन च्वै।
जरि जाहु सो जीवन जानकी नाथ, जिये जग में तुम्ह से बिन ह्वै।।
जो व्यक्ति ईश्वर का बनके नहीं जीता, वह दुनियां में सदा दुःखी रहता है, अशांत और परेशान रहता है। आपके हाथ में एक लाठी दे दी जाये तो वह सहारा बन जाती है। कुत्ता सामने काटने दौड़े, तो लाठी से आप बचाव कर सकते हैं। शत्रु से भी अपना बचाव कर सकते हैं। अंधेरी रात में भी वह आपका सहारा बन सकती है। लेकिन कहीं दस-पन्द्रह लाठियां आपको दे दी जाए तो वे आपके सिर का बोझ बन जायेंगी, सहारा बनकर नहीं रहेंगी। एक लाठी सहारा बनती है, अनेक लाठियां हो जाने पर बोझ बन जाया करती है। इसी तरह एक प्रभु को पकड़ लोगे तो वह जीवन का सहारा बन जायेगा, पर परिवार के अनेक सदस्यों को पड़े रहोगे तो बोझ बनकर आपको सदा दुःखी बनाते रहेंगे। परिवार के सदस्य आपको दुःखी बनायेंगे। वे आपका सहारा नहीं बनेंगे। सहारा केवल ईश्वर बनता है।
साथी संगी तज गये कोऊ न निभायो साथ।
कह नानक या विपत्ति में एक टेक रघुनाथ।।
गुरु नानक देव कि यह पावन वाणी है- साथी संगी तज गये कौऊ न निभायो साथ। कहना नानक या विपत्ति में, एक टेक रघुनाथ।। जब संकट का समय आयेगा, मृत्यु के बाद जब आप आगे बढ़ेंगे तो केवल ईश्वर ही आपका सहायक बनेगा। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।